पुरुषार्थ: The Art of Rebuilding My Soul
“Through Every Phase of Life, I Build, Break, Learn, Repeat”
“जीवन के हर पड़ाव पर बनाता हूँ, तोड़ता हूँ, सीखता हूँ, फिर से शुरू करता हूँ।”
यदि जीवन को एक शब्द में समझना हो, तो मेरे लिए वह शब्द है — पुरुषार्थ।
यह कोई किताबों में लिखा हुआ दर्शन भर नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जिया गया सच है।
Purusharth means self-effort — अपने कर्मों की ज़िम्मेदारी खुद उठाना।
सिर्फ़ भाग्य पर भरोसा नहीं,
सिर्फ़ शिकायतों में समय बर्बाद नहीं,
बल्कि यह स्वीकार करना कि मेरी ज़िंदगी में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें मेरी भूमिका ज़रूर है।
Building Phase: जब मैं कुछ खड़ा करता हूँ
जीवन के हर दौर में एक समय ऐसा आता है जब इंसान निर्माण करता है —
सपने,
करियर,
रिश्ते,
आत्मसम्मान,
और अपनी पहचान।
I build with hope.
उम्मीद के साथ, मेहनत के साथ, और कई बार बिना नींद के।
यह वह दौर होता है जब लगता है — इस बार सब ठीक होगा।
यहीं पर पुरुषार्थ का पहला रूप दिखाई देता है —
बिना किसी गारंटी के प्रयास।
परिणाम मिलेगा या नहीं, यह पता नहीं होता,
लेकिन ईमानदारी से कोशिश करना अपने हाथ में होता है।
Breaking Phase: जब सब टूटने लगता है
फिर ज़िंदगी अपना असली चेहरा दिखाती है।
जो बनाया था, वही टूटने लगता है।
योजनाएँ असफल हो जाती हैं।
लोग बदल जाते हैं।
रिश्तों के मायने बदल जाते हैं।
यह दौर सबसे ज़्यादा दर्द देता है,
लेकिन यही दौर इंसान का चरित्र गढ़ता है।
Purusharth is tested here.
जब कोई ताली नहीं बजाता,
जब कोई साथ खड़ा नहीं होता,
और जब इंसान सिर्फ़ अपने ज़मीर के सामने खड़ा होता है।
Learning Phase: जब दर्द समझ बन जाता है
टूटने के बाद दो रास्ते होते हैं —
या तो कड़वाहट,
या फिर सीख।
मैं सीख को चुनता हूँ।
Life has taught me that हर नुकसान अपने साथ एक सबक लाता है,
बस अहंकार को चुप रखना पड़ता है।
गलतियों को स्वीकार करना पड़ता है —
नफ़रत के साथ नहीं, बल्कि ज़िम्मेदारी के साथ।
यहीं समझ आता है कि पुरुषार्थ सिर्फ़ कर्म नहीं,
आत्ममंथन भी है।
खुद से सवाल पूछना
और सच सुनने का साहस रखना।
Repeat Phase: फिर से शुरुआत करना
सबसे कठिन चरण — फिर से शुरू करना।
खुद पर दोबारा भरोसा करना।
लोगों पर दोबारा विश्वास करना।
और तब उठ खड़ा होना,
जब दिल पहले ही थक चुका हो।
But this is where purusharth becomes strength.
जो व्यक्ति गिरने के बाद भी दोबारा खड़ा होता है,
वह सिर्फ़ ज़िंदा नहीं रहता —
वह रूपांतरित होता है।
मेरा पुरुषार्थ
मेरा पुरुषार्थ भाग्य को कोसना नहीं है।
और न ही हर चीज़ पर नियंत्रण का घमंड।
मेरा पुरुषार्थ है:
-
जो मेरे हाथ में है, उसे पूरी ईमानदारी से करना
-
जो चला गया, उसे गरिमा के साथ स्वीकार करना
-
और जो आने वाला है, उसके लिए खुद को मानसिक और नैतिक रूप से मज़बूत रखना
Life मुझे बार-बार तोड़ सकती है।
मैं खुद को बार-बार बनाऊँगा।
हर बार थोड़ा ज़्यादा समझदार,
थोड़ा ज़्यादा संतुलित इंसान बनकर।
Build. Break. Learn. Repeat.
यही मेरी यात्रा है।
यही मेरा धर्म है।
और यही मेरा पुरुषार्थ।



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